Month: जुलाई 2018

वह हमें जानता है

क्यापरमेश्वर जानता था कि मैं रात में गाड़ी चलाकर 100 मील दूर अपने गाँव जा रहा था? मैं जिस स्थिति में था, वह बताना सरल नहीं है l मुझे तेज़ बुखार था और मेरे सर में दर्द l मैंने प्रार्थना की, “प्रभु, मैं जानता हूँ कि आप मेरे साथ हैं, किन्तु मैं पीड़ा में हूँ!”

थका हुआ और कमज़ोर, मैंने अपनी गाड़ी एक छोटे गाँव के निकट सड़क के किनारे खड़ी कर दी l दस मिनट के बाद, मैंने एक आवाज़ सुनी l “हेल्लो, क्या आपको कोई मदद चाहिए?” एक व्यक्ति मित्रों के साथ उस गाँव से आकर बोला l उनकी उपस्थिति अच्छी लगी l मैं उनसे उनके गाँव का नाम ना मी न्याला(अर्थात्, “राजा मेरे विषय जानता है!”), सुनकर चकित हुआ l मैं बगैर रुके इस गाँव से कई बार गुज़रा था l इस बार, प्रभु ने मुझे याद दिलाने के लिए इस गाँव के नाम का उपयोग किया कि, वास्तव में, सड़क पर मेरी पीड़ादायक स्थिति में राजा मेरे साथ था l उत्साहित होकर, मैं निकट के दवाखाना की ओर आगे बढ़ गया l

हमारी परिस्थिति के बावजूद, हमारे दैनिक कामों में जो हम अलग-अलग स्थानों और स्थितियों में करते हैं, परमेश्वर हमें पूरी तरह जानता है (भजन 139:1-4, 7-12) l वह हमें न छोड़ता है न भूलता है; न ही वह इतना व्यस्त है कि हमारा परवाह न करे l परेशानी में या कठिन स्थितियों में अर्थात “रात” और “दिन” (पद 11-12), हम उसकी उपस्थिति से छिपे हुए नहीं हैं l यह सच्चाई हमें इतनी आशा और निश्चयता देती है कि हम प्रभु की प्रसंशा कर सकते हैं जिसने हमें सावधानी से रचा है और सम्पूर्ण जीवन में अगुवाई करता है (पद.14) l

हमारे भय में एक लंगर

क्याआप चिंता करनेवाले हैं? मैं हूँ l मैं प्रतिदिन चिंता से संघर्ष करता हूँ l मैं बड़ी बातों के विषय चिंता करता हूँ l मैं छोटी बातों के विषय चिंता करता हूँ l कभी-कभी, ऐसा महसूस होता है जैसे मैं सभी बातों के विषय चिंता करता हूँ l किशोरावस्था के समय एक बार, मैंने पुलिस को बुलाया जब मेरे माता-पिता  घर लौटने में चार घंटे विलम्ब कर दिए l

बाइबल हमें बार-बार अभय रहने को कहती है l परमेश्वर की भलाई और सामर्थ्य के कारण, और इसलिए कि उसने यीशु को हमारे लिए बलिदान होने के लिए और पवित्र आत्मा को हमारा मार्गदर्शन करने के लिए भेजा, हमें अपने जीवन को भय में व्यतीत करने की ज़रूरत नहीं है l हम कठिन स्थितियों का सामना कर सकते हैं, किन्तु परमेश्वर ने सदैव हर स्थिति में हमारे साथ रहने की प्रतिज्ञा की है l

भय के क्षणों में यशायाह 51:12-16 ने मेरी अधिकाधिक सहायता की है l यहाँ पर, परमेश्वर ने अपने लोगों को जिन्होंने अत्यधिक दुःख सहा था,  याद दिलाता है कि अब अभी भी वह उनके साथ था, और कि उसकी सांत्वना देनेवाली उपस्थिति आखिरी सच्चाई है l चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी बुरी हो : उसने उनसे नबी यशायाह के द्वारा कहा, “मैं, मैं ही तेरा शांतिदाता हूँ” (पद.12) l

मुझे यह प्रतिज्ञा पसंद  है l वे छः शब्द मेरी आत्मा के लिए भावनाओं को स्थिर करनेवाला लंगर रहा है l जब-जब जीवन पराजित करनेवाला महसूस हुआ, जब मेरी स्वयं की “लगातार [थरथराहट] अर्थात् खौफ़” (पद.13) दमनकारी महसूस हुआ, मैं बार-बार इस प्रतिज्ञा से लिपट गया l इस परिच्छेद के द्वारा, परमेश्वर मुझे विश्वास से अपनी निगाहें अपने भय से हटाने की ताकीद देता है और उसकी ओर आँखें उठाने को कहता है जो “आकाश [का ताननेवाला] है (पद.13) अर्थात् वह जो हमें दिलासा देने की प्रतिज्ञा की है l

परदेशियों द्वारा दूसरे परदेशियों का स्वागत

 

जब हमदोनों पति-पत्नी मेरी ननद के निकट रहने के लिए सिएटल(अमरीकी शहर) गए, हम नहीं जानते थे  कि हम किस जगह रहेंगे या काम करेंगे l एक स्थानीय चर्च ने एक स्थान ढूंढने में हमारी सहायता की : एक किराये का घर जिसमें अनेक सोने के कमरे थे l हम एक सोने का कमरा अपने लिए रखते हुए, दूसरे कमरे अंतर्राष्ट्रीय विद्यार्थियों को दे सकते थे l अगले तीन वर्षों में, हम परदेशी होकर परदेशियों का स्वागत करते रहे : हमने समस्त संसार के लोगों के साथ अपने घर और भोजन को बाँटा l हम और हमारे साथ रहनेवालों ने दर्जनों अंतर्राष्ट्रीय विद्यार्थियों को प्रति शुक्रवार अपने घर में बाइबल अध्ययन के लिए आमंत्रित किया l

परमेश्वर के लोग घर से दूर रहने का अर्थ जानते हैं l सैंकड़ो वर्षों तक, इस्राएली पूरी तौर से  मिस्र में परदेशी और दास थे l लैव्यव्यवस्था 19 में, “अपने माता-पिता का आदर करो” और “चोरी मत करो” (पद.3,11), जैसे परिचित निर्देशों के साथ-साथ परमेश्वर ने प्रभावशाली तरीके से परदेशियों की देखभाल करना याद दिलाया, क्योंकि उन्हें मालुम था कि परदेशी और भयभीत रहने का क्या अर्थ होता है (पद.33-34) l

जबकि हम सब जो आज परमेश्वर के अनुयायी हैं, हमने वस्तुतः निर्वासित जीवन नहीं जीया है, फिर भी हम जानते हैं कि इस पृथ्वी पर “परदेशी” (1 पतरस 2:11) अर्थात् ऐसे लोग जिन्हें परदेशी होने का अनुभव मालूम है क्योंकि उनकी अंतिम निष्ठा एक स्वर्गिक राज्य की है l हमसे पहुनाई करनेवाले समुदाय का निर्माण करने को कहा गया है अर्थात् परदेशी जो परदेशियों को परमेश्वर के परिवार में आमंत्रित करते हैं l हम दोनों पति-पत्नी ने सिएटल में जिस सत्कार शील निमंत्रण का अनुभव किया, उसने हमें इसे दूसरों तक पहुँचाना सिखाया और यह परमेश्वर के परिवार का केंद्र बिंदु है (रोमियों 12:13) l

गहराई का परमेश्वर

जीवविज्ञानी वार्ड एप्पलटन्स कहते है, “जब आप गहरे समुद्र में जाते हैं, और हर बार जब आप नमूना इकठ्ठा करते हैं, आपको नयी प्रजाति मिलेगी l हाल ही के एक वर्ष में,  विज्ञानियों ने समुद्र के सतह के नीचे के जीवन में 1,451 नयी प्रजातियों को पहचाना l हम समुद्र के नीचे के आधे संसार को नहीं जानते हैं l

अय्यूब 38-40 में, परमेश्वर ने अय्यूब के लाभ के लिए अपनी सृष्टि की समीक्षा की l तीन काव्यात्मक अध्यायों में, परमेश्वर ने मौसम के आश्चर्य को, कायनात की विशालता को, और अपने-अपने निवास में रहनेवाले विविध प्राणियों के विषय समझाया l ये वे वस्तुएं हैं जिनको हम ध्यान से देख सकते हैं l उसके बाद परमेश्वर ने एक पूरे अध्याय में अद्भुत लिव्यातान के विषय बताया l लिव्यातान एक भिन्न प्राणी है जिसका कवच चारों ओर के आक्रमण को विफल कर सकता है (अय्यूब 41:7,13), आकर्षक शक्ति वाला (पद.12), और उसके दांत चारों ओर से डरावने हैं (पद.14) l उसके मुँह से जलते हुए पलीते निकलते हैं, और . . . उसके नथुनों से . . . धुआँ निकलता है (पद.19-20) l “धरती पर उसके तुल्य और कोई नहीं है (पद.33) l

बिलकुल ठीक, तो परमेश्वर एक विशालकाय जंतु के विषय बातचीत करता है जिसे हम सबों ने नहीं देखा है l क्या अय्यूब 41 की मुख्य  बात यही है?
नहीं! अय्यूब 41 परमेश्वर के आश्चर्जनक चरित्र सम्बन्धी हमारी समझ को विस्तार देता है l भजनकार ने यह लिखते हुए इसे और विस्तारित किया, “. . . समुद्र बड़ा और बहुत ही चौड़ा है, . . . और लिव्यातान भी जिसे तू ने वहां खेलने के लिए बनाया है” (भजन 104:25-26) l  लिव्यातान का उल्लास l

हमारे पास समुद्र में खोज करने के लिए वर्तमान है l हमारे पास महाप्रतापी, रहस्मय, उल्लासित परमेश्वर के विषय जानने के लिए अनंत काल होगा l

शांत रह, मेरे मन

एक माँ की कल्पना करें जो बच्चे से प्यार कर रही हो, उसकी नाक पर धीरे-धीरे ऊँगली फेर रही हो और धीमे से उससे बोल रही हो  –“शांत रहो, खामोश रहो l” यह व्यवहार और सरल शब्द छोटे व्याकुल बच्चों की निराशा, अशांति, या पीड़ा में उनको आराम देने और शांत करने के लिए हैं l ऐसे नज़ारे विश्वव्यापी और अनंत है और हममें से अधिकतर लोग ऐसे प्रेमी अभिव्यक्तियों के देने या लेने वाले रहे हैं l भजन 131:2 पर विचार करते समय, यही तस्वीर मेरे दिमाग में आती है l

इस भजन की भाषा और शैली यह बताती है कि लेखक, दाऊद, ने कुछ ऐसा अनुभव किया था जिससे गंभीर विचार उत्पन्न हुआ था l क्या आपने निराशा, पराजय, या विफलता का अनुभव किया है जिसने विचारशील, विचारात्मक प्रार्थना को प्रेरित करता है? आप क्या करते हैं जब जीवन की परिस्थितियाँ आपको विनम्र बनाती है? जव आप किसी जांच में असफल होते हैं या आपकी नौकरी छूट जाती है या आप किसी सम्बन्ध के टूटने का अनुभव करते हैं? दाऊद ने अपने हृदय को प्रभु के सामने खोल दिया और इस क्रम में इमानदारी से अपने मन को टटोला और खोज किया (भजन 131:1) l अपनी परिस्थितियों के साथ मेल करने का प्रयास करते हुए, उसने एक छोटे बच्चे की तरह जो केवल अपनी माँ के निकट रहकर संतुष्टि पाता है, वह भी तृप्त हुआ (पद.2) l

जीवन की परिस्थितियाँ बदलती हैं और हम विनम्र किये जाते हैं l इसके बावजूद हम यह जानकार आशा रख सकते हैं और संतोष प्राप्त कर सकते हैं कि एक है जिसने हमेशा साथ रहने का और कभी नहीं छोड़ने का वादा किया है l हम उस पर सम्पूर्ण भरोसा रख सकते हैं l

अनेक वरदान, एक उद्देश्य

मक्का, जिसे भुट्टा भी कहा जाता है, मेरे गृह देश मैक्सिको का मुख्य भोजन है l और यह अनेक प्रकार का होता है l आप पीला, भूरा, लाल और काले गुच्छे वाला और अद्भुत चित्तीदार रूप वाला मक्का भी देख सकते हैं l किन्तु शहरी लोग चित्तीदार मक्का खाना पसंद नहीं करते हैं l रेस्टोरेंट के मालिक और शोधक आमादो रामरिज़ समझाते हैं कि उन लोगों के अनुसार एकरूपता(बराबरी) गुणवत्ता का पर्यायवाची है l फिर भी चित्तीदार मक्का स्वाद में अच्छा होता है और वे इससे बढ़िया मालपुआ/चिल्ला बनाते हैं l

मसीह की कलीसिया एक ही रंग और प्रकार के मक्के की तुलना में इस चित्तीदार मक्के की तरह ही है l प्रेरित पौलुस ने देह का अलंकार उपयोग करते हुए कलीसिया का वर्णन करता है, क्योंकि यद्यपि हम सब एक देह हैं, और हमारा परमेश्वर भी एक है, हममें से प्रत्येक को एक भिन्न वरदान मिला है l जैसे पौलुस कहता है, “वरदान तो कई प्रकार के हैं, परन्तु आत्मा एक ही है; और सेवा भी कई प्रकार की है परन्तु प्रभु एक ही है; और प्रभावशाली कार्य कई प्रकार के हैं, परन्तु परमेश्वर एक ही है, जो सब में हर प्रकार का प्रभाव उत्पन्न करता है” (1 कुरिन्थियों 12:5-6) l हमारे परस्पर सहायता करने के तरीकों में हमारी एकता परमेश्वर की उदारता और रचनात्मकता दर्शाती है l

अपनी विविधता को स्वीकार करते समय, हमारा प्रत्येक प्रयास हमारे विश्वास और उद्देश्य में हमारी एकता को बनाए रखे l अवश्य ही, हमारी योग्यताओं और पृष्ठभूमि में अंतर है l हम अलग-अलग भाषा बोलते हैं और अलग-अलग देश से आते हैं l किन्तु हम सब का एक ही अद्भुत परमेश्वर, अर्थात् सृष्टिकर्ता है जो इस विविधता से आनंदित होता है l

पूर्ण भरोसा की घोषणा

लॉरा की माँ कैंसर से संघर्ष कर रही थी l एक दिन सुबह के समय लॉरा ने अपनी सहेली के साथ उसके लिए प्रार्थना की l उसकी सहेली ने, जो कई वर्षों से प्रमस्तिष्क पक्षघात(Cerebral Palsy) के कारण निःशक्त हो गयी थी, इस तरह प्रार्थना की : “प्रभु, आप मेरे लिए सब कुछ करते हैं l कृपया लॉरा की माँ के लिए भी सब कुछ करें l”

लॉरा अपनी सहेली के परमेश्वर पर “पूर्ण भरोसा की घोषणा” से द्रवित हो गयी l उस क्षण पर विचार करते हुए, वह बोली, “मैं हर परिस्थिति में कितनी बार परमेश्वर की आवश्यकता महसूस करती हूँ? यह कुछ ऐसा है जो मुझे हर दिन करना चाहिए!”

यीशु जब पृथ्वी पर था, उसने निरंतर अपना भरोसा अपने स्वर्गिक पिता पर दर्शाया l कोई सोच सकता है कि क्योंकि यीशु मानव शरीर में परमेश्वर था, आत्म-निर्भर होने के लिए उसके पास सबसे अच्छा कारण हो सकता था l किन्तु इसलिए कि यीशु ने सबत के दिन अर्थात् विधित तौर पर निर्धारित विश्राम दिन में “कार्य” अर्थात् किसी को चंगा किया था,  धार्मिक अधिकारियों द्वारा इससे सम्बंधित कारण पूछने पर, उसने उत्तर दिया, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, पुत्र आप से कुछ नहीं कर सकता, केवल वह जो पिता को करते देखता है” (यूहन्ना 5:19) l यीशु ने भी परमेश्वर पर अपना पूर्ण भरोसा दर्शाया!

पिता पर यीशु की निर्भरता आखिरी उदहारण प्रस्तुत करता है कि परमेश्वर के साथ सम्बंधित रहने का अर्थ क्या होता है l हर क्षण हमारे द्वारा ली जाने वाली सांस परमेश्वर की ओर से उपहार है, और उसकी इच्छा है कि हम उसकी सामर्थ्य से भर जाएँ l जब हम प्रेम करने और हर क्षण प्रार्थना और उसके वचन पर निर्भरता से सेवा करते हैं, हम उसके ऊपर पूर्ण भरोसा की घोषणा करते हैं l   

छिपी हुई सुन्दरता

 

टोबागो द्वीप से दूर कैरेबियन सागर में तैरते समय उसकी सतह के नीचे देखने के लिए स्नोर्कल(snorkel) अर्थात् श्वास लेने के लिए नली की ज़रूरत को समझाने के लिए हमें अपने बच्चों को फुसलाना था l किन्तु गोता लगाकर जब वे जल के ऊपर आए वे बहुत उल्लसित थे, “नीचे बहुत प्रकार की मछलियाँ हैं! वह इतना सुन्दर है जो मैंने कभी नहीं देखा है जैसे रंगीन मछली!”

इसलिए कि, जल का सतह मीठे पानी की झील की तरह ही दिखाई देती थी जैसे हमारे घर के निकट है, हमारे बच्चे सतह के नीचे छिपी खूबसूरती से वंचित रह जाते l

जब नबी शमूएल यिशे के बेटों में से एक बेटे को इस्राएल के अगले राजा के रूप में अभिषेक करने गया, उसने उसके बड़े बेटे, एलीआब के रूप को देखकर प्रभावित हो गया l नबी ने सोचा कि उसको सही व्यक्ति मिल गया है, किन्तु प्रभु ने एलीआब को अस्वीकार कर दिया l परमेश्वर ने शमूएल को याद दिलाया कि उसका “देखना मनुष्य का सा नहीं है; मनुष्य तो बाहर का रूप देखता है, परन्तु यहोवा की दृष्टि मन पर रहती है” (1 शौमेल 16:7) l
इसलिए शमूएल ने पूछा कि क्या उसके और भी बेटे हैं l सबसे छोटा पुत्र उपस्थित नहीं था किन्तु अपने परिवार की भेड़ें चरा रहा था l सबसे छोटा पुत्र, दाऊद को बुलाया गया और प्रभु ने शमूएल से उसे अभिषेक करने को कहा l

अक्सर हम लोगों का बाहरी स्वरुप देखते हैं और हमारे पास हमेशा उनकी भीतरी, और कभी-कभी छिपी, खूबसूरती देखने का समय नहीं होता l जो परमेश्वर के लिए महत्वपूर्ण है उसे हम हमेशा विशेष नहीं मानते हैं l किन्तु यदि हम समय निकालकर सतह के नीचे झांकेंगे, हमें महान ख़जाना मिलेगा l

परमेश्वर की महान सृष्टि

 

हाल ही में जब हम अपने नाती-पोते के साथ एक सैर पर थे, फ्लोरिडा में हमें एक वेब कैमरा की सहायता से एक उकाब के परिवार को देखने का अवसर मिला l भूमि से बहुत ऊपर बने घोंसले में हमने प्रतिदिन माँ, पिता और उकाब के छोटे बच्चे के दैनिक क्रिया पर ध्यान दिया l हर दिन दोनों माता-पिता निरंतर अपने बच्चे की सुरक्षा का ध्यान रखते हुए, उसके पोषण के लिए निकट के नदी से मछली लाकर खिलाया करते थे l
उकाब के परिवार की यह कहानी परमेश्वर की अद्भुत सृष्टि की एक छवि अर्थात् सृष्टि की छवि का एक विस्तृत वर्णन, परमेश्वर के रचनात्मक हाथों के कार्यों का रूप प्रस्तुत करती है, जिसका वर्णन भजनकार अपने भजन 104 में करता है l

हम कायनात से सम्बंधित परमेश्वर की सृष्टि का प्रताप देखते हैं (पद.2-4) l
हम पृथ्वी की रचना का अनुभव करते हैं अर्थात् जल, पर्वत, घटी (पद.5-9) l
हम परमेश्वर के उपहार की महिमा अर्थात् पशु, पक्षी, और उपज का आनंद लेते हैं (पद.10-18) l
हम परमेश्वर द्वारा रचित प्रकृति के क्रम का अर्थात् सुबह/रात, अन्धकार/ प्रकाश, कार्य/विश्राम पर अचम्भा करते हैं (पद.19-23) l

परमेश्वर ने अपने हाथों से हमारे आनंद और अपनी महिमा के लिए कितनी शानदार सृष्टि रची है! “हे मेरे मन, तू यहोवा को धन्य कह!”(पद.1) l हममें से हर एक उसको सभी बातों के लिए जो उसने हमें दिया है जिसको हम सराह सकते हैं और जिसका हम आनंद ले सकते हैं उसे धन्यवाद दे सकते हैं l